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    Homeराज्यउत्तर प्रदेशकाजीपुर में मुहर्रम के नवा पर ताज़िया उठा कर किया इमाम हुसैन...

    काजीपुर में मुहर्रम के नवा पर ताज़िया उठा कर किया इमाम हुसैन को  याद- आबिस रज़ा सुल्तानपुरी एवं काशिफ ककरौली ने पेश किए कलाम 

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    फतेहपुर। करबला की शहादत पर मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन का उठा ताज़िया और रात भर या हुसैन या हुसैन की सदाएं गूंजती रहीं। हज़ारों की भीड़ करबला के शहीदों पर मातम करती रही। ये वो हुसैन हैं जो मोहम्मद साहब के नवासे हैं। अली के बेटे हैं जिनको कूफे से बारह हज़ार खत भेज कर करबला बुलाया गया और लिखा गया कि आप हमारी मदद के लिए आइए, दीन खतरे में है लेकिन कूफ़े के लोगों ने यजीद के खौफ से हुसैन का साथ छोड़ दिया। हुसैन मदद के लिए बुलाते रहे लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया फिर भी हुसैन ने यजीद के हराम कामों का डट कर मुकाबला करते रहे।
    इमाम हुसैन की उम्र 57 वर्ष थी और उनके हाथों से कत्ल होने वाले यजीदी सिपाहियों की संख्या 1950 तक बताई जाती है।इमाम हुसैन की मदद की वजह से शहीद होने वाले कूफियों की संख्या एक सौ अड़तीस थी जिसमें से पंद्रह गुलाम भी शामिल थे। इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके बदन पर भाले के 33 घाव और तलवार के 34 घाव थे। तीरों की संख्या अनगिनत बताई गई है। शहादत तक इमाम हुसैन के बदन पर कुल उन्नीस सौ तक घाव थे। करबला की जंग में इमाम हुसैन हक़ पर थे इसलिए आज चौदह सौ साल बाद भी दुनिया के लोग हुसैन का गम मानते हैं और यजीद पर लानत भेजते हैं। यजीद के अत्याचारों का बयान हो रहा है और हुसैन जिंदाबाद के नारे देश विदेश में गूंज रहे हैं।
    सुल्तानपुर घोष थाना क्षेत्र के उमरपुर गौती (काजीपुर) गांव में इमाम हुसैन के नवां का आयोजन किया गया। इस मौके पर जिला सुल्तानपुर से हिंदुस्तान के मशहूर नौहाखान आबिस रज़ा सुल्तानपुरी और जिला मुज़फ्फ़रनगर ककरौली से नौहा खान क़ाशिफ़ रज़ा ज़ैदी ने बेहतरीन कलाम पेश किए तथा इमाम हुसैन को पुरसा पेश किया। ग्राम प्रधान उमर व पूर्व प्रधान मोहम्मद तथा वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी और मकसूद अली, इमरान, आमिर अली एवं हज़ारों हुसैनी अज़ादार  रात भर शबेदारी के बीच मौजूद रह कर लब्बैक या हुसैन के नारे लगाते रहे और आज से चौदह सौ साल बीत जाने के बाद भी ताजिया निकाल कर हुसैनी अज़ादार ये बता रहे हैं कि देखो करबला में यजीद के साथ लाखों की फ़ौज थी और इमाम हुसैन के साथ सिर्फ बहत्तर साथी थे लेकिन इमाम हुसैन हक़ पर थे और यजीद बातिल जंग को अंजाम दे रहा था जिसकी वजह से यजीद का ऐसा बुरा अंजाम हुआ कि आज सारी दुनिया में कोई भी यजीद का नाम लेने वाला नहीं है।

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