मथुरा की सुबह थी, जब सब कुछ बदल गया।
मंदिरों की घंटियों के बीच, मथुरा के एक शांत प्रांगण में जब कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी मंच पर बैठे, तो उम्मीद यही थी कि वे श्रीराम और कृष्ण की गाथाएं सुनाएंगे। लेकिन जो शब्द उनके मुख से निकले, उन्होंने पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया।
“25 साल की लड़की जब घर लौटती है, तो चार‑चार जगह मुंह मार चुकी होती है…”
— यही था वह कथन, जिसने लाखों महिलाओं, युवाओं, और धर्मप्रेमियों के मन में आक्रोश भर दिया।।
कथावाचक, जो स्वयं को भगवान की कथा का माध्यम मानते हैं, कैसे एक पूरे वर्ग पर टिप्पणी कर सकते है
आक्रोश की लहर: राजनीति से लेकर सड़क तक
इस बयान के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक बाढ़ आ गई। महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान ने बयान को “नारी गरिमा के खिलाफ” बताया। कांग्रेस और सपा की महिला नेताओं ने एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी की मांग की। मथुरा के स्थानीय थाने में IPC की धारा 354A, 509, और IT एक्ट के तहत शिकायत दर्ज हुई।
अनिरुद्धाचार्य की सफाई: “वीडियो को काटा गया…”
एक दिन बाद, उन्होंने एक सफाई वाला वीडियो जारी किया।
“मेरे शब्दों को गलत संदर्भ में लिया गया है। मैंने सिर्फ गलत आचरण की ओर इशारा किया था, न कि सभी महिलाओं की ओर। मैं नारी का सम्मान करता हूँ। अगर मेरी बात से किसी को दुःख हुआ हो तो क्षमा चाहता हूँ।”लेकिन इस माफीनामे को बहुतों ने “राजनीतिक दबाव में किया गया नाटक” करार दिया।
धर्म और समाज: जब संत खुद मर्यादा भूल जाएं
धर्म का काम समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। जब एक कथावाचक, जिसे हज़ारों लोग अपने परिवार जैसा सम्मान देते हैं, महिलाओं को इस तरह के लांछन से जोड़ता है — तो सवाल उठते हैं: क्या हम धर्म के नाम पर नैतिकता भूलते जा रहे हैं? क्या प्रवचन अब चेतना की जगह सेंसेशन का माध्यम बनते जा रहे हैं?
जब युवा लड़कियाँ स्वावलंबी बन रही हैं, क्या उन्हें कुचलने की ये साज़िशें नहीं हैं?
यह सिर्फ एक बयान नहीं था – यह एक संकेत है
एक समाज जो धीरे-धीरे नारी को मंदिर की मूर्ति से हटाकर, ज़िंदगी की लकीरों में लाना चाहता है – उसे ऐसे बयानों से झटका लगता है। अनिरुद्धाचार्य अकेले नहीं हैं — पिछले वर्षों में कई कथावाचकों ने धर्म के मंच को विवादों का अखाड़ा बना दिया है।
अंतिम बात: मर्यादा के भी आराध्य होते हैं
जिस राम को अनिरुद्धाचार्य जी अपनी कथाओं में बार-बार आदर्श पुरुष कहते हैं, वे कभी किसी नारी को सार्वजनिक रूप से अपमानित नहीं करते। तो उनके भक्त ऐसा कैसे कर सकते हैं? समाज माफ़ करता है, लेकिन सीखने की उम्मीद रखता है। अब समय है कि धर्मगुरु अपने शब्दों को शास्त्र नहीं, समाज की ज़िम्मेदारी समझें।