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    देवर्षि नारद मुनि जयंती आज

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    पुराणों तथा कथाओं के अनुसार, देवर्षि नारद एक सार्वभौमिक देवदूत तथा देवताओं के लिये समस्त प्रकार की जानकारी के प्राथमिक स्रोत हैं। नारद मुनि किसी भी समय स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक तथा पाताललोक का भ्रमण कर सकते हैं। यह माना जाता है कि, देवर्षि नारद पृथ्वी के प्रथम पत्रकार हैं। नारद मुनि समस्त प्रकार की सूचनाओं का सञ्चार करने हेतु ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते रहते हैं। हालाँकि, अधिकांश समय पर उनकी सूचना वाद-विवाद को जन्म देती है, किन्तु यह वाद-विवाद ब्रह्माण्ड के हित के लिये होता है।

    नारद मुनि का सनातन धर्म में महत्व
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    भगवान विष्णु के परम भक्त और भगवान ब्रह्मा के पुत्र नारद मुनि से जुड़ी पौराणिक कथाएं पुरातन काल से ही कही सुनी जाती रही हैं। नारद जी को भगवान ब्रह्मा के छह पुत्रों में से छठवां पुत्र माना जाता है। नारद मुनि को सभी ऋषियों के बीच देवर्षि का दर्जा प्राप्त है। यानि कि नारद मुनि देवलोक के ऋषि माने जाते हैं। नारद मुनि की महत्ता इसी बात से समझ में आती है कि न सिर्फ देवता ही उनका सम्मान करते थे बल्कि असुरों के बीच भी उनका बेहद मान-सम्मान था। भगवान कृष्ण ने नारद मुनि का जिक्र श्रीमद्भगवद्गीता में करते हुए कहा गया है कि,

    “देवर्षीणाम् च नारद:” “अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूँ।”

    देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है।

    देवर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ है- सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। अर्थात् सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।

    कैसा है नारद मुनि का स्वरूप
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    नारद मुनि उन देवताओं में से हैं जिनके हाथ में किसी प्रकार का कोई अस्त्र नहीं है। इनके एक हाथ में वीणा है और एक हाथ में वाद्य यंत्र है। नारद मुनि को समस्त देवताओं और असुरों के बीच संदेशवाहक का स्थान प्राप्त है। ऐसे में नारद जयंती को कई जगहों पर पत्रकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। नारद मुनि ब्रह्मलोक में वास करते हैं और सभी लोकों में विचरण करने में सक्षम हैं। नारद ऋषि की सवारी बादल को माना जाता है।

    नारद मुनि का जन्म कैसे हुआ?
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    पौराणिक शास्त्रों में नारद मुनि को भगवान ब्रह्मा जी का पुत्र बताया गया है। लेकिन भगवान ब्रह्मा के पुत्र रूप में पैदा होने की इस घटना का संबंध नारद मुनि के पूर्व जन्म से भी हैं। मान्यता है कि पूर्व जन्म में नारद मुनि एक गंधर्व थे। उनका नाम हुआ करता था। बेहद सुन्दर काया वाले उपबर्हण को अपने रूप पर बेहद घमंड था।
    कहा जाता है कि एक बार कुछ अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आए और रासलीला में लग गए। जिससे भगवान ब्रह्मा जी उन पर कुपित हो गए और उन्हें श्राप दिया कि अगले जन्म में वे एक शूद्र दासी के यहाँ जन्म लेंगे।
    भगवान ब्रह्मा के श्राप से उपबर्हण का जन्म एक शूद्र दासी के यहाँ हुआ लेकिन बालक उपबर्हण ने बचपन से ही अपना पूरा जीवन भगवान की आराधना और उनकी खोज में लगा दिया। यह देख कर भगवान बहुत प्रसन्न हुए और अगले जन्म में उन्हें ब्रह्मा पुत्र होने का वरदान दिया। समय आने पर इनका जन्म ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में हुआ जो नारद मुनि के नाम से चारों ओर प्रसिद्ध हुए।

    नारद जयंती पर करें दान
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    भगवान विष्णु के परम भक्त नारद जी के जन्म दिवस पर दान-पुण्य को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इस दिन दान जरूर करें। माना जाता है कि इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान-दक्षिणा देने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

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