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    Homeराज्यउत्तर प्रदेशविद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का निजीकरण के विरोध में  प्रदर्शन किया

    विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का निजीकरण के विरोध में  प्रदर्शन किया

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    फतेहपुर- नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के आह्वान पर आज देश के सभी प्रांतों के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओ ने उत्तर प्रदेश में दो विद्युत वितरण निगमों के अंतर्गत आने वाले 42 जनपदों के किये जा रहे बिजली के निजीकरण के विरोध में  प्रदर्शन किया।
           नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के बैनर तले ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज, इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया, इंडियन नेशनल इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन और ऑल इंडिया पावर मेन्स फेडरेशन ने 09 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।
           विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश और राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर्स संगठन, फतेहपुर के सदस्यों जितेंद्र मौर्य, आदित्य त्रिपाठी, विनय शुक्ल, मो. इम्तियाज़, राजकुमार गुप्ता, धीरेन्द्र सिंह, अभिजीत, राकेश कुमार, संतोष सिंह, लाल सुदर्शन सिंह, निसार खान ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार  ने विद्युत वितरण निगमों में घाटे के भ्रामक आंकड़ों देकर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय लिया है जिससे उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा व्याप्त है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मी विगत 07 माह से लगातार आंदोलन कर रहे हैं किंतु अत्यंत खेद का विषय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आज तक एक बार भी उनसे वार्ता नहीं की।
           उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में गलत पावर परचेज एग्रीमेंट के चलते विद्युत वितरण निगमों को निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे 6761 करोड रुपए का सालाना भुगतान करना पड़ रहा है । इसके अतिरिक्त निजी घरानों से बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीदने के कारण लगभग 10000 करोड रुपए प्रतिवर्ष का अतिरिक्त भार आ रहा है। उत्तर प्रदेश में सरकारी  विभागो पर 14400 करोड रुपए का बिजली राजस्व का बकाया है। उत्तर प्रदेश सरकार की नीति के अनुसार किसानों को मुफ्त बिजली दी जाती है, गरीबी रेखा से नीचे के बिजली उपभोक्ताओं को 03 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली दी जाती है जबकि बिजली की लागत  रुपए 07.85 पैसे प्रति यूनिट है। बुनकरों आदि को भी सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी की धनराशि ही लगभग 22000 करोड रुपए है। उत्तर प्रदेश सरकार इन सबको घाटा बताती है और इसी आधार पर निजीकरण का निर्णय लिया गया है।
          उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और शासन के कुछ बड़े अधिकारियों की कुछ चुनिंदा निजी घरानों के साथ मिली भगत है। वे लाखों करोड़ रुपए की बिजली की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। पूर्वांचल में प्रदेश की सबसे गरीब जनता रहती है। दक्षिणांचल में बुंदेलखंड के क्षेत्र में बेहद गरीब लोग रहते हैं जहां पीने के पानी की भी समस्या है। निजीकरण होने के बाद यहां के उपभोक्ताओं की सब्सिडी समाप्त होने का अर्थ होगा कि उपभोक्ताओं को 10 से 12 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदनी पड़ेगी जो वे नहीं कर पाएंगे। इस प्रकार उत्तर प्रदेश की गरीब जनता को लालटेन युग में धकेला जा रहा है।
           उत्तर प्रदेश में किए जा रहे बिजली के निजीकरण के विरोध में आज देशभर में 27 लाख बिजली कर्मचारियों ने सभी जनपदों और परियोजनाओं पर भोजन अवकाश के दौरान सड़क पर उतरकर व्यापक विरोध प्रदर्शन किया और उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों के साथ अपनी एकजुटता दिखाई। बिजली कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों का कोई भी उत्पीड़न करने की कोशिश की गई तो देश के तमाम 27 लाख बिजली कर्मी मूक दर्शन नहीं रहेंगे और सड़क पर उतर कर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे जिसकी सारी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार की होगी।

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